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अशोक आनन का नवगीत


*अशोक आनन*
उजियारे में-
हम दिखे कभी न
अंधियारे में ही
हम सदा रहे। ।



सूरज न हो-
जब भाग्य में
हम
दीये ही कुछ जलाएं ।
‌घरों में पसरे
अंधेरे को
‌हम
उजाले से दूर भगाएं। ।


मुख पृष्ठों पर-
हम दिखे कभी न
हाशिय़ो पर ही -
हम सदा रहे। ।
प्रतिकूल हो समय
जब
साथ जुगनू भी
छोड़ देते हैं। ।



धार नदियों की-


तब
ये छोटे तिनके भी
मोड़ देते हैं ।



किनारों पर -
हम दिखे कभी न
मंझधारों में ही -
हम सदा रहे ।
पतझड़ो ने-
पीर जब सहलाई
हम
पतझडो़ के हो लिए ।



मखमल हमें -
जब न मिले
हम
टाटों पर सो
लिए। ।
मधुमासों में-
हम दिखे कभी न
पतझडो़ में ही-
हम सदा रहे ।
*अशोक आनन, मक्सी,जिला- शाजापुर (म.प्र.)मोबा. न : 9977644232


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