Technology

3/Technology/post-list

कोरोना काल में भावनात्मक संतुलन जरूरी

डाॅ. सुजाता जैन

कोरोना वायरस महामारी ने दुनिया भर में लोगों की भावनात्मक व मानसिक स्थिति पर गहरा असर डाला है। आज भागती-दौड़ती जिंदगी में अचानक लगे इस ब्रेक और कोरोना वायरस के डर ने लोगों के बीच चिंता, डर और अनिश्चितता का माहौल बन जाने के कारण लोग दिन-रात इससे जूझ रहे हैं। इस बीमारी ने स्वास्थ्य सेवाओं पर जबरदस्त दबाव तो डाला ही है साथ ही लोगों के सामने गंभीर चुनौतियां पेश की हैं।

समय कभी भी अच्छा या बुरा नहीं होता है। हम अपने मन के अनुसार तय करते हैं कि समय अच्छा है या बुरा। हमेशा मेहनती और बुद्धिमान होना सफल माना जाता है पर मनोवैज्ञानिकों की नजर में वही व्यक्ति सफल है जो भावनात्मक रूप से दृढ़ है। एक ही बुरी परिस्थिति में फंसे दो लोगों से समझें तो एक व्यक्ति उस समय और परिस्थिति को कोसने में लग जाता है, वहीं दूसरा व्यक्ति उस समय शांत भाव से समस्या के समाधान को ढूंढने में अपनी पूरी शक्ति लगा देता है। ऐसा दूसरा व्यक्ति सिर्फ इसलिए कर पाता है क्योंकि वह भावनात्मक रूप से सक्षम है। मुश्किल वक्त में खुद के प्रति लोग अधिक जिम्मेदार हो जाते हैं। हौसला बना रहे तो डरने के बजाय लोग डर को दूर करने की कोशिश में जुट जाते हैं।
आज लोगों को कोरोना रूपी वैश्विक समस्या का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे समय में अपने मन को पूर्णतः शांत रखना चाहिए। यदि हमारा मन शांत होता है तो हम अपने अंदर प्रवेश करने वाले नकारात्मक सोच और विचारों की आहट सुन व समझ पाते हैं। इन भावों और अपने व्यवहार में आए परिवर्तन के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि हमे अपने आपको भावनात्मक संबल देने की आवश्यकता है।
जिस समय हमारे अंदर यह विचार भी आए कि कोरोना जैसी बीमारी की चपेट में मैं और मेरा परिवार भी आ सकते हैं, वहीं समझ जाइएगा कि आपने बीमारी को आमंत्रण दे दिया है। क्योंकि अधिकांश बीमारी मन की सोच में आती है। चूंकि समय खराब है और हमारा मन मजबूत नहीं है कि वह इन नकारात्मक विचारों को आने से रोकें तो इसके भी कई उपाय हैं जिनकी हम तैयारी कर सकते हैं।
प्रतिदिन सुबह उठकर परमात्मा को धन्यवाद दें एक सुबह और दिखाने के लिए। प्रतिदिन अपने आपको यह बोले कि आप पूरी तरह तन-मन से स्वस्थ हैं। इस तरह की प्रार्थना से आपके अंदर आत्मविश्वास बढ़ेगा, साथ ही जो शब्द आप बोल रहे हैं, वे भी ध्वनि के साथ आपके मन की तरंगों के माध्यम से अवचेतन मन तक अपनी पहुंच बना लेंगे।
शब्दों की ऊर्जा और ध्वनि का मेल हमारे जीवन में कई परिवर्तन लाता है। हम यदि नकारात्मक शब्दों को बोलेंगे तो वहीं ऊर्जा हमारे अवचेतन मन तक पहुंचेगी और विचारानुसार हमारा मन उसी प्रक्रिया में जाएगा जैसे शब्दों को उसने सुना। किसी भी परिस्थिति में अपने शब्दों और भावों पर पहले ध्यान दीजिएगा। यही शब्द और भाव मिलकर आपके जीवन का पथ निर्धारित करते हैं।
Share on Google Plus

About शाश्वत सृजन

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 Comments:

एक टिप्पणी भेजें