मैं हूं माटी का दिया ,
पंच तत्व से बनी ,
,कुम्हार ने हाथों से ढाला।
मैं हूं माटी का दिया।
डर गई तूफानों से ,
लो थरथराने लगी ,
अपने अस्तित्व को बचाने ,
फिर से मैं सम्हल गई ,
जब तक जिन्दा रही,
मैनें तम को पिया ।
मैं हूं माटी का दिया ।
मैं दर्द सहती रही ,
रात भर जलती रही,
लोग नींद में ख्वाब बुनते रहे,
मैं इतिहास रचती रही ,
जब तक जली,
जग को रोशन किया ।
मैं हूं माटी का दिया ।
अस्तित्व मेरा तब तक,
जब तक तेल बाती का साथ है,
मुझे अपने साथी पर ,
और खुद पर विश्वास है ,
न बन पाई सूरज की किरण,
परोपकार मैंने किया ।
मैं हूं माटी का दिया ।
माटी हूं माटी में मिल जाऊंगी,
भेदभाव नहीं करूंगी जाति में,
जहां प्यार से जलाओगे ,
मैं जल जाऊंगी ,
हर द्वार पर मैंने प्यार दिया ।
मैं हूं माटी का दिया ,
मैं हूं माटी का दिया ।
*श्रीमती शोभा रानी तिवारी इंदौर मो.89894 09210
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