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रोशनी की किरण बनकर आई है-ज़रा रोशनी में लाऊं (समीक्षा)


पुस्तक : ज़रा रोशनी मैं लाऊं (कविता संग्रह)


प्रकाशक: अयन प्रकाशन, महरौली, नई दिल्ली - 110030


मूल्य: 240 रुपये, सजिल्द


समीक्षाः राजकुमार जैन राजन*


       डॉ. भावना कुँवर एक संवेदनशील रचनाकार है जिन्होंने हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी की लौ विदेशों में भी लंबे समय से जलाए रखी है। आपने अपनी रचनाधर्मिता और लेखकीय प्रतिबद्धता से अब तक उल्लेखनीय सफर तय किया है । अपनी रचनाधर्मिता की सुगंध से  भारत सहित युगांडा और आस्ट्रेलिया के साहित्य अनुरागियों को प्रेरित व प्रभावित किया है। आपकी कई कृतियां प्रकाशित हो चुकी है।अपने सृजन से अपनी उपस्थिति का अहसास पाठकों व साहित्य जगत को कराया है । आज के समय में  विसंगतियों  के कारण मनुष्य निराशा के अंधेरों में झकड़ा जा रहा है ऐसे में इस संग्रह की कविताएं  रोशनी की किरण बनकर पाठकों के सामने आई है-


" घना अंधेरा छाया


ज़रा रोशनी मैं लाऊं


ये सोचकर कलम को


मैंने उठा लिया है" (पेज, 23)


      "ज़रा रौशनी मैं लाऊं" डॉ. भावना कुँवर का कविता संग्रह है जिसमें उन्होंने मानव मन की संवेदनामूलक वर्णमाला को रचा है तो आत्म संघर्ष मूलक द्वंद्वों को बड़े ही प्रभावशाली तरीके से उकेरा है। संग्रह की हर कविता नए संदेश, नई ऊर्जा से ओत-प्रोत है जहां कविताओं में माँ की याद है, पिता का वात्सल्य है,राष्ट्र के प्रति प्रेम है,आतंकवाद के प्रति आक्रोश है,महिला अपराध के प्रति घृणा है , पर्यावरण संरक्षण के लिए चिंता है, स्वार्थी रिश्तों के प्रति दुःख- पीड़ा है तो वहीं उनका आत्मविश्वास भी साफ झलकता है, यही कारण है ,कि वह प्रत्येक परिस्थितियों में स्वयम को स्थापित करने में दक्ष है -


"मैंने खुद को मिटाया है


इन रिश्तों की खातिर


पर इन्होंने सिर्फ


कुचला है मेरी भावनाओं को


रौंदा है मेरे अस्तित्व को" (पेज,52)


       एक प्रतिबद्ध कवयित्री जीवन की संभावनाओं को जागृत रखती है और अपने शब्दों में उम्मीद बन्धाति है। खतरनाक होते जा रहे इस दुर्दांत समय में आम आदमी की उम्मीदें शब्दों से होना आश्चर्य नहीं है। डॉ. भावना कुँवर  की कविताएं अपनी बनावट और भाषा के व्यवहार के कारण बड़ी आसानी से ग्राह्य है । रचनाकार ने जीवन के हर अनुभव का खुलेपन से स्वागत किया है। तमाम झंझावातों का सामना करने के बाद भी उनकी कलम विचलित हुए बिना, बेबाकी से बात रखने में समर्थ है-


"पड़ती है जब भी जरूरत मुझे


 तुम्हारे सहारे की,


लगते हो तुम खुद ही 


कोई सहारा ढूंढने"  (पेज,95


       जीवन -जगत के निरीक्षण -परीक्षण से स्वानुभव और व्यवहारिक दृष्टि का विकास होता है। शास्त्र ज्ञान की अपेक्षा दुनिया को निकट से देखना, सुनना, गुनना, मथना  यथार्थ बोध के लिए बहुत आवश्यक होता है। डॉ. भावना कुँवर ने इन सभी से अपने अनुभव जगत को विस्तृत और बहुआयामी बनाया है। इस लिये " जरा रोशनी मैं लाऊं"  कविता संग्रह में जीवन के विविध पक्ष अनायास प्रतिबिंबित होते चले गए हैं। कवयित्री की अनुभव विविधता और जीवन को समग्रता के साथ प्रस्तुत करने की ललक के रूप में देखे जा सकते हैं -


"मैं दूर बहुत दूर हूँ


या ये कहूँ सात समंदर पार हूँ


तीन सौ पेंसठ में से मेरे हिस्से 


आते हैं तीस दिन


भर लेती हूं उनको यादों के पिटारे में


और फिर खर्च करती हूं बड़ी कंजूसी से" (पेज,102)



  • ●●●●●●●


" मैं उस रूह के साथ


उड़ती चली गई


एक ख़ूबसूरत दुनिया में


जहां छल, कपट, फरेब


कुछ भी तो नहीं होता" (पेज, 67)


      "जरा रोशनी मैं लाऊं" संग्रह की कविताओं में विषय की विविधता है तो भोगा हुआ यथार्थ, देखा हुआ परिवेश, तपा हुआ चिंतन, पवित्र प्रेम परिलक्षित होता है। इन कविताओं में डॉ. भावना कुँवर ने अपने  चिंतन व अनुभवों को सहेजने की ईमानदार कोशिश की है। ये जीवन की कठोर सच्चाइयों के बीच कोमल भावनाओं के काव्य प्रेम की उद्यात ऊंचाइयों का दिग्दर्शन भी करती हैं।


     अभिव्यक्ति व शिल्प के स्तर पर कविताएँ एक दार्शनिक या चिंतक की तरह उपस्थित होती है। जीवन की सार्थकता, निरर्थकता, अतीत बोध और भविष्य बोध सहित अनेक दार्शनिक विचारों की अभिव्यक्ति भी इन कविताओं में दिखाई देती है-


" जोड़ा था तिनका - तिनका


जाने कैसे बिखर गया


आया था जो हंसता सावन


बन पतझर क्यों जर गया" (पेज, 123)


    डॉ. भावना कुँवर की सभी रचनाएँ चिंतन के नए द्वार खोलती - सी प्रतीत होती है। कुछ कविताओं में गीतात्मक सौंदर्य की सृष्टि डॉ. डॉ भावना कुंवर ने की है।ये रचनाएँ नई कविता की एक नई कड़ी के रूप में याद की जाएगी। अयन प्रकाशन ने इस कविता संग्रह को पूरे मनोयोग से उत्तकृष्टतम तरीके से, आकर्षक साज सज्जा के साथ प्रकाशित किया है। मेरा ख्याल है की  "जरा रोशनी में लाऊं" कविता संग्रह को अधिकाधिक पाठकों, समीक्षकों का प्यार मिलेगा और उसका उचित मूल्यांकन होगा। मेरी हार्दिक मंगलकामनाएं हैं।



समीक्षक :राजकुमार जैन राजन,चित्रा प्रकाशन,आकोला -312205, ( चित्तौडगढ ), राजस्थान


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