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योग से एकाग्रचित्त होने का दिलचस्प शोध


*ललित गर्ग*
हाल ही में फ्रांस की किल्यरमोंट एवेंजर यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने अपने नवीन शोध में योग के माध्यम से एकाग्रचित्त होने वाले लोगों की तुलना अन्य काम करने वालों से की, तो काफी दिलचस्प नतीजे निकले। प्लॉस वन नाम की शोध पत्रिका में छपे शोधपत्र में इन वैज्ञानिकों ने बताया है कि एकाग्रचित्त होने वालों के लिए समय का अर्थ बदल जाता है। यह शोध और उसके निष्कर्ष एक बार फिर भारतीय योग की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता को उजागर किया है। आज की तेज रफ्तार जिंदगी मनुष्य को अशांति, असंतुलन, तनाव, थकान तथा चिड़चिड़ाहट की ओर धकेल रही हैं, जिससे अस्त-व्यस्तता बढ़ रही है। ऐसी विषमता एवं विसंगतिपूर्ण जिंदगी को स्वस्थ तथा ऊर्जावान बनाये रखने के लिये योग एक ऐसी रामबाण दवा है जो माइंड को कूल तथा बॉडी को फिट रखता है। योग से जीवन की गति को एक संगीतमय रफ्तार दी जा सकती है। 
भारतीय योग में ध्यान लगाने के बहुत सारे फायदे गिनाए जाते हैं। इनमें से बहुत सारी बातों को विज्ञान ने भी स्वीकार किया है। न्यूरोसाइंस के एक से अधिक शोध में यह बात बार-बार जाहिर हुई है कि ध्यान लगाने से तनाव कम होता है, कार्यक्षमता एवं एकाग्रता बढ़ती है जो मस्तिष्क व उसकी उत्पादकता को बढ़ाती है। ये फायदे कितने होते हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि ध्यान लगाते समय आप कितने तन्मय एवं एकाग्रचित्त होते हैं। एकाग्रचित्त होकर ध्यान लगाने की चर्चा इन दिनों पश्चिमी देशों में काफी होती है, जहां इसे माइंडफुलनेस कहा जाता है। इसकी मूल अवधारणा भी भारतीय योग की तरह ही है, जो यह कहती है कि आप जो भी करें, एकाग्रचित्त होकर करें और किसी भी काम को करते समय अपने वर्तमान में ही रहें। इस माइंडफुलनेस पर इस समय दुनिया भर में बहुत सारे शोध हो रहे हैं। हमारे आत्मविश्वास एवं एकाग्रता की योग्यता हमारे अंदर ही निहित होती है। उसके सबसे अच्छे निर्णायक हम स्वयं होते हैं। हमें यह पता रहता है कि हम जिस कार्य में हाथ डाल रहे हैं, उसे ठीक प्रकार से संपन्न कर सकेंगे या नहीं, उसकी कार्यविधि का हमको ज्ञान है या नहीं, उसके वांछित परिणाम हम प्राप्त कर सकेंगे या नहीं और इनके परिप्रेक्ष्य में ही हम स्वयं को वह कार्य कर सकने के योग्य या अयोग्य मानते हैं। इसलिये योग न केवल शांति एवं संतुलित जीवन का माध्यम है बल्कि यह हमें अपने कार्यक्षेत्र में भी उल्लेखनीय परिणाम देने का निमित्त बनता है।  
फ्रांस के इस नवीन शोध में वैज्ञानिकों ने लोगों को दो समूह में बांटा। एक समूह के लोगों को एक निश्चित अवधि तक एकाग्रचित्त होकर ध्यान लगाने के लिए कहा गया, जबकि दूसरे समूह को उतनी ही देर का संगीत सुनने के लिए दिया गया। जो एकाग्रचित्त थे, वे पूरी तरह अपने वर्तमान पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, जबकि जो संगीत सुन रहे थे, वे उसका मजा लेते हुए कुछ भी सोचने-समझने को स्वतंत्र थे। इस प्रयोग के बाद उन लोगों से अलग-अलग उनके समय-बोध के बारे में बात की, यह पूछा गया कि उनका समय किस तरह बीता? एकाग्रचित्त होने वाले तकरीबन सभी लोगों ने कहा कि ध्यान लगाने के बाद उन्हें लगा कि पूरा समय इतनी तेजी से बीत गया कि उन्हें पता भी नहीं लगा, जबकि दूसरे समूह की सोच ऐसी नहीं थी, सबको पता था कि कितना समय कैसे बीता। यह प्रयोग कई तरह से किया गया और हर बार यही नतीजे मिले कि योग एवं ध्यान से एकाग्रता सधती है।
इस शोध से एक दिलचस्प बात यह भी सामने आयी है कि ध्यान संगीत से अधिक प्रभावी एवं सरस तरीका है एकाग्रता को साधने का, बोरियत को दूर करने का, जबकि ध्यान एवं योग को हम अक्सर नीरस चीज मान लेते हैं। जबकि इस प्रयोग के नतीजे बिल्कुल उल्टी तरफ जाते दिख रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इसे अन्य तरह से भी समझाने की कोशिश की है। उनका कहना है कि जब आपको कई काम करने होते हैं और दिन भर उसी में उलझे होते हैं, तो आपके पास बहुत सारी दूसरी चीजों के बारे में सोचने की फुरसत तक नहीं होती। ऐसे में, अक्सर लगता है कि समय बहुत तेजी से भागा जा रहा है। एकाग्रचित्त होकर ध्यान लगाने पर भी लगभग यही होता है। वैज्ञानिक इस नतीजे पर भी पहुंचे कि ध्यान क्रिया का जिसका अनुभव जितना ज्यादा है, उसका समय-बोध भी उतना ही परिमार्जित होता है, वे अपने समय को अपने अनुकूल बनाने में उतने ही अधिक सक्षम है। फ्रांस के इन वैज्ञानिकों का यह शोध भारतीय योग को आम जनजीवन में प्रतिष्ठित करने का भी सशक्त माध्यम बना है। यह हमारे उन संन्यासियों और योगियों के बारे में भी बहुत कुछ कहता है, जो पहाड़ों और जंगलों में जाकर बरसों-बरस साधना करते हैं। यहां हमसे समय बिताए नहीं बीतता और हम हर समय खुद को बोरियत से बचाए रखने के उपाय खोजते रहते हैं, जबकि वे वहां एकांत में भी चिंता-मुक्त एवं सुदीर्घ कालावधि तक ध्यानमग्न होते हैं।
निश्चित ही फ्रांस की यह नवीन शोध योग एवं ध्यान को दुनियाभर में लोगों की जीवनशैली बनाने का उपक्रम बनेगा। योग के फायदों को देखते हुए हर कोई अपनी भागती हुई जिंदगी में इसे अपनाता हुआ दिख रहा है। धीरे-धीरे ही सही लेकिन लोगों को यह बात समझ में आ रही है कि योग करने से ना केवल बड़ी से बड़ी बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है बल्कि अपने जीवन में खुशहाली भी लाई जा सकती है, जीवन को संतुलित किया जा सकता है, कार्य-क्षमताओं को बढ़ाया जा सकता है, शांति एवं अमन को स्थापित किया जा सकता है। 
वैज्ञानिक प्रगति, औद्योगिक क्रांति, बढ़ती हुई आबादी, शहरीकरण तथा आधुनिक जीवन के तनावपूर्ण वातावरण के कारण हर व्यक्ति बीमार है। यह किसी एक राष्ट्र के लिए नहीं, समूचे विश्व के लिए चिंता का विषय है। आज जीवन का हर क्षेत्र समस्याओं से घिरा हुआ है। दैनिक जीवन में अत्यधिक तनाव/दबाव महसूस किया जा रहा है। हर आदमी संदेह, अंतद्र्वंद्व और मानसिक उथल-पुथल की जिंदगी जी रहा है। मानसिक संतुलन अस्त-व्यस्त हो रहा है। एकाग्रता एवं मानसिक संतुलन का अर्थ है विभिन्न परिस्थितियों में तालमेल स्थापित करना, जिसका सशक्त एवं प्रभावी माध्यम योग ही है। 
दरअसल योग धर्म का प्रायोगिक स्वरूप है। परम्परागत धर्म तो लोगों को खूँटे से बाँधता है और योग सभी तरह के खूँटों से मुक्ति का मार्ग बताता है। इसीलिये मेेरी दृष्टि में योग मानवता की न्यूनतम जीवनशैली होनी चाहिए। आदमी को आदमी बनाने का यही एक सशक्त माध्यम है। एक-एक व्यक्ति को इससे परिचित-अवगत कराने और हर इंसान को अपने अन्दर झांकने के लिये प्रेरित करने हेतु योग अमृत-जीवनधारा है, जो इंसान में योगी बनने और अच्छा बनने की ललक पैदा करती है। योग मनुष्य जीवन की विसंगतियों पर नियंत्रण का माध्यम है। 
किसी भी व्यक्ति की जीवन-पद्धति, जीवन के प्रति दृष्टिकोण, जीवन जीने की शैली-ये सब उसके विचार और व्यवहार से ही संचालित होते हैं। आधुनिकता की अंधी दौड़ में, एक-दूसरे के साथ कदमताल से चलने की कोशिश में मनुष्य अपने वास्तविक रहन-सहन, खान-पान, बोलचाल तथा जीने के सारे तौर-तरीके भूल रहा है। यही कारण है, वह असमय में ही भांति-भांति के मानसिक/भावनात्मक दबावों के शिकार हो रहा है। मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाने से शारीरिक व्याधियां भी अपना प्रभाव जमाना चालू कर देती है। जितनी आर्थिक संपन्नता बढ़ी है, सुविधादायी संसाधनों का विकास हुआ है, जीवन उतना ही अधिक बोझिल बना है। तनावों/दबावों के अंतहीन सिलसिले में मानवीय विकास की जड़ों को हिला कर रख दिया है। योग ही एक माध्यम है जो जीवन के असन्तुलन को नियोजित एवं एकाग्र कर सकता है।



*ललित गर्ग,ई-253, सरस्वती कुुंज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली


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