*प्रो.शरद नारायण खरे
जीवन ढलने लग गया,भरी दुपहरी आज ।
मातम करने लग गया,अब मौसम पर राज ।।
गहन तिमिर उदघोष कर,निगल रहा आलोक ।
सारे ही निष्ठुर हुये,नहीं किसी को शोक ।।
दुनिया कैसी हो गई,कैसे हैं अब लोग !
पूजा से सब दूर हैं,चाहें केवल भोग !!
सेवक बनकर घूमते,पर करते हैं राज !
सेवा का कोई नहीं,करता है अब काज !!
सत्ता पाना हो गया,अब कितना आसान !
पर ऑफिस में,भृत्य का,पद मुश्किल,यह जान !!
जो सच्चे ,वो रो रहे,झूठों पर मुस्कान !
नम्बर दो से ही बढ़े,अब इंसां की शान !!
फैशन करके हो गई,अब नारी अडवांस !
कुछ भी करने को खड़ी,मिल जाये बस चांस !!
वे ऊंचे पैकिज बिकें,जिनकी डिग्री उच्च !
उनको लगता देश यह,बिलकुल बिरथा,तुच्छ !!
आशाएं धूमिल हुईं,टूट रहे विश्वास !
दर्द,पीर में हैं घिरे,वर्ष,दिवस औ' मास !!
रिश्ते बेमानी हुये,सिसक रहे अनुबंध !
स्वारथमय अब दिख रहे,सारे ही सम्बंध !!
डिग्री सबके पास है,पर हरगिज़ ना ज्ञान !
इनसानी जज़्बात से,हर कोई अनजान !!
जीवन जीवन ना रहा,ना ही यह वरदान !
जीवन की जो असलियत,कोई ना अनजान !!
*प्रो.शरद नारायण खरे
मंडला(म.प्र.)-481661
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