*विक्रम कुमार
कहे गंगा की अविरल धारा कहे चंदा और कहे तारा
कहे सागर यह नदियों से कह रहा हिमालय सदियों से
भरत राज की पुण्य भूमि का जग में जिंदा मान रहे
हम हों न हो तुम हो न हो ये प्यारा हिन्दुस्तान रहे
और न कुछ है लेकिन है यही हमारी अभिलाषा
हम गीत बनाकर गाएंगे मानवता की परिभाषा
सदा वतन पर अमन .चैन और सौहार्द्र की छांव रहे
भेद सभी मिटा दें दिल से हर दिल में सद्भाव रहे
भाई.भाई आपस में सदा ही हिंदु और मुसलमान रहे
हम हों न हो तुम हो न हो ये प्यारा हिन्दुस्तान रहे
हम देश नहीं स्थान नहीं हम मेहनत और सफलता हैं
हम भाईचारे का मूल.मंत्र और सिद्धांतों में समता है
विश्वास हमारा रहा सदा है बीज प्रेम के बोने में
बांटा हमने प्यार सदा दुनिया के कोने.कोने में
प्रेमभाव का सबके दिल में बना सदा स्थान रहे
हम हों न हो तुम हो न हो ये प्यारा हिन्दुस्तान रहे
हम वो जो बन वीर शिवाजी मुगलों से टकराते हैं
शेरशाह बन कर के हम हुमायूं से लड़ जाते हैं
बनकर बुद्ध महावीर दुनिया शोभित कर जाते हैं
विवेकानंद बन के जग को मोहित कर जाते हैं
मील का पत्थर होकर भी हम सदा सरल आसान रहे
हम हों न हो तुम हो न हो ये प्यारा हिन्दुस्तान रहे
*विक्रम कुमार
मनोरा , वैशाली
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