Subscribe Us

header ads

ऋतुराज वसंत  



पेड़ों की पत्तियां झड़ रही

मद्धम हवा के झोकों से
चिड़िया विस्मित चहक रही
ऋतुराज वसंत धीमे से आरहा
आमों पर मोर फूल की खुशबू
संग हवा के संकेत देने लगी
टेसू से हो रहे पहाड़ के गाल सुर्ख
पहाड़ अपनी वेदना किसे बताए
वो बता नहीं पा रहा पेड़ का दर्द
लोग समझेंगे बेवजह राइ का पर्वत
पहाड़ ने पेड़ो की पत्तियों को समझाया
मै हूँ तो तुम हो
तुम ही तो कर रही वसंत का अभिवादन
गिरी नहीं तुम बिछ गई हो
और आने वाली नव कोपलें जो है तुम्हारी वंशज
कर रही वसंत के आने इंतजार
कोयल के मीठी राग अलाप से
लग रहा वादन हो जैसे शहनाई का
गुंजायमान हो रही वादियाँ में
गुम हुआ पहाड़ का दर्द
जो खुद अपने सूनेपन को
टेसू की चादर से ढाक रहा
कुछ समय के लिए
अपना तन


*संजय वर्मा "दृष्टि "
125 शहीद भगत सिंह मार्ग
मनावर जिला धार (म प्र )



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ