*सुषमा दिक्षित शुक्ला
सोशल डिस्टेंसिंग को यूँ तो सामान्यतया एक नकारात्मक व्यवहार में गिना जाता था ,मगर आज कोरोना के दुष्प्रभाव के चलते सोशल डिस्टेंसिंग एक अति आवश्यक सकारात्मक कदम बन चुका है ।बात कुछ समय की ही तो है, अगर हम शारीरिक रूप से अपने आप को अपने घरों में समेट लेते हैं तो इससे हमारा व हमारे परिवार का तो कल्याण होगा ही साथ में देश का एवं संपूर्ण मानवता का भी भला होगा। मेडिकल स्रोतों के अनुसार कोरोना वैश्विक महामारी की व्यापकता मानव शरीर के एक दूसरे से संपर्क में ही निहित है ,तो कौन नहीं चाहेगा कि हमारा एवं हमारे परिवार का, अपने देश का एवं संपूर्ण मानवता का भला हो। कुछ वक्त के लिए कार्यप्रणाली जरूर थम गई है ,मगर आगे चलकर सब सही हो जाएगा जब हम सब जीवित बचेंगे तो सब संभाल लेंगे। और फिर सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब भावनात्मक अलगाव तो कदापि नहीं है, यह तो मात्र सुरक्षा का कवच है ,जिसे ओढ़ना आज की नितांत आवश्यकता बन पड़ी है। अतः सोशल डिस्टेंस बनाकर रखें निरंतर साफ सफाई करें ,दूसरों को भी प्रेरित करते रहें ,जागरूक करते रहे, मगर डराएं नहीं। सकारात्मक सोच रखते हुए परमेश्वर से प्रार्थना करते रहे। अंततः यही सत्य है कि विश्व विजेता सिकंदर भी भारत में ही हारा था ,तो फिर कोरोना का भी वही हश्र होना निश्चित है । सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयः।
*सुषमा दिक्षित शुक्ला
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