*नवेन्दु उन्मेष*
जिला निर्वाचन अधिकारी अपने चेंबर में बैठे बहुत चिंतित थे कि चुनाव सिर पर सवार है। चुनाव आयोग रोज ब रोज चुनाव की तैयारियों के बारे में उनसे पूछ रहा है लेकिन वे कुछ कहने में असमर्थ दिख रहे हैं। कारण यह था कि जिन महिला कर्मचारियों को चुनाव की ड्यूटी पर लगाया गया था उन में से अधिकांश ने आवेदन दिया था कि वे प्रेग्नेंट हैं इस कारण चुनाव ड्यूटी करने में असमर्थ हैं। यह बात अधिकारी महोदय के गले नहीं उतर रही थी कि आखिर चुनाव आते ही अधिकांश महिला कर्मचारी प्रेग्नेंट कैसे हो सकती हैं।
उन्होंने तत्काल अपने पीए को बुलाया और कहा कि तुरंत सिविल सर्जन को फोन करके यहां बुलाओ। सिविल सर्जन महोदय के पास जैसे ही काॅल आया कि जिला निर्वाचन अधिकारी ने उन्हें बुलाया है तो वे दौड़े चले आये। उन्होंने देखा कि अधिकारी बहुत तनाव में हैं और अपनी कुर्सी से उठकर कमरे का चक्कर लगा रहे हैं।
सिविल सर्जन को उन्होंने बैठने का इशारा किया और सवाल दागा कि मुझे यह बताओ कि मेरे जिले में चुनाव आते ही अधिकांश महिला कर्मी प्रेग्नेंट कैसे हो जाती है। सिविल सर्जन को कुछ समझ में नहीं आया। उन्होंने कहा, सर, प्रेग्नेंट होना महिलाओं का जन्मसिद्ध अधिकार है। वे प्रेग्नेंट तो कभी भी सकती हैं। इस पर अधिकारी ने कहा कि मैं यह नहीं पूछ रहा हॅूं कि महिलाएं प्रेग्नेंट हो सकती है या नहीं। मैं तो यह जानना चाह रहा था कि क्या चुनाव आते ही जिले की अधिकांश महिलाकर्मी जिन्हें चुनाव ड्यूटी में लगाया गया है वे प्रेग्नेंट हो सकती है।
इसके उत्तर में सिविल सर्जन ने कहा महिलाएं प्रेग्नेंट तो कभी भी हो सकती हैं लेकिन चुनाव के वक्त में जिन महिलाओं को ड्यूटी पर लगाया जाता है वे चुनाव के वक्त प्रेग्नेंट हो सकती है। मेडिकल की भाषा में इसे चुनावी प्रेग्नेंसी कहा जाता हैं।
अधिकारी ने पूछा अखिर ऐसा होता क्यों है। सिविल सर्जन ने कहा चुनाव के वक्त ऐसा ही होता है। चुनाव अधिकारी ने इसके बाद मेडिकल बोर्ड गठित कर सभी महिलाओं की प्रेग्नेंसी की जांच कराने का आदेश सिविल सर्जन को दिया। मेडिकल बोर्ड गठित की गयी। जिन महिलाकर्मियों ने प्रेग्नेंसी के आधार पर छुट्टी के लिए आवेदन दिया था। उनमें से अधिकांश को महिला चिकित्सकों ने प्रेग्नेंट बताया।
इसके बावजूद जिला निर्वाचन अधिकारी की समझ में नहीं आया। वे कहने लगे चुनाव में तो नेता वोट के लिए प्रेग्नेंट हो सकते हैं लेकिन चुनाव ड्यूटी से भागने के लिए अधिकांश महिलाकर्मी प्रेग्नेंट कैसे हो सकती हैं। यह बात मेरे मेरे गले नहीं उतर रही है।
इस तरह चुनाव पार हो गया। अब जिला चुनाव अधिकारी की उत्सुकता आवेदन देने वाली महिलाओं के मां बनने की थी। एक दिन उन्होंने उन सभी विभागों के प्रभारियों की बैठक बुलायी और आदेश दिया कि वे इस बात का रिपोर्ट करें कि जिन महिलाओं ने चुनाव के वक्त प्रेग्नेंट होने का आवेदन दिया था वे अब तक मां बनी हैं या नहीं। प्रभारियों ने कहा कि आखिर महिलाओं से हम कैसे पूछ सकते हैं कि वे अब तक मां बनी हैं या नहीं या कब मां बनने वाली हैं। यह नियम के अनुकूल नहीं होगा। ऐसा करना अनुशासन के खिलाफ भी होगा। एक प्रभारी ने तो यहां तक कहा कि चुनाव में बच्चा पैदा करने के लिए राजनीतिक दलों की प्रेग्नेंसी होती है। जैसे किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत मिल जाता है तो तत्काल सरकार बनाने का बच्चा पैदा कर देते हैं लेकिन जैसे ही किसी दल को बहुमत नही मिलता सभी राजनीतिक दल मिलकर बच्चा पैदा करते हैं। इसे सामूहिक प्रेग्नेंसी कहते हैं। दूसरे प्रभारी ने कहा चुनाव पूर्व गठबंधन में दो-तीन दल मिलकर बच्चा पैदा करने का प्रयास करते हैं लेकिन इसके बाद भी उन्हें बच्चा पैदा नहीं होता तो वे दूसरे दलों को मिलाकर बच्चा पैदा करने का प्रयास करते हैं। इसके लिए वे हार्स ट्रेडिंग करते हैं। साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाकर सरकार बनाने का प्रयास करते हैं। जैसे महाराष्ट्र में इनदिनों शिव सेना और भाजपा दोनों ही बच्चा पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन वे ऐसा कर नहीं पा रहे हैं। जाहिर है चुनाव के बाद दोनों में बच्चा पैदा करने की शक्तिक्षीण हो गयी है। इसके लिए वे एनसीपी का सहारा मांग रहे हैं। मीटिंग में बैठे उर्जा विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि महाराष्ट्र के एक कांग्रेसी विधायक ने कांग्रेस के समर्थन से सरकारी बच्चा पैदा करने की मदद आलाकमन से मांगी है। उसे टोकते हुए दूसरे प्रभारी ने कहा लेकिन कांग्रेस तो खुद चुनावी बच्चा पैदा करने
में बांझ सिद्ध हो रही है।
एक अन्य प्रभारी ने कहा कि वैसे सात या नौ महीने में कोई बच्चा पैदा होता है लेकिन राजनीतिक दल चुनाव के बाद तत्काल बच्चा पैदा करते हैं। जब उनके यहां बच्चा पैदा हो जाता है तो छठी के स्थान पर षपथ ग्रहण समारोह होता है। सरकार के सौ दिन पूरे होने पर अन्नप्राशन का कार्यक्रम आयोजित होता है। मीटिंग का माहौल बदल गया था। जिला निर्वाचन प्रभारी ने उन्हें टोका। यहां बात चुनाव में महिलाकर्मियों की प्रेग्नेंसी की हो रही थी। आप इस बात का पता लगाये कि चुनाव के वक्त जिन महिलाकर्मियों ने प्रेग्नेंट होने का आवेदन दिया था वे अब तक मां बनी हैं या नहीं। प्रभारियों ने कहा कि अगर हम अपने महिलाकर्मियों से यह पूछते हैं तो वे नयी सरकार के पास आवेदन देकर प्रताड़ित करने का भी आरोप लगा सकती हैं। इसके बाद हमलोगों पर ही नयी सरकार कार्रवाई कर सकती है। इस लिए उनसभी ने इस मामले में अधिकारी को चुप रहने की नसीहत दे डाली।
बाद में पता चला कि चुनाव ड्यूटी में लगायी गयी महिलाएं प्रेग्नेंट तो हुई थी लेकिन सभी का गर्भपात हो चुका है। किसी ने कोई बच्चा पैदा ही नहीं किया।
*नवेन्दु उन्मेष, सीनियर प़त्रकार-दैनिक देशप्राण,रांची, झारखंड,संपर्क-9334966328
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