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उज्जयिनी, महाकवि कालिदास और देव प्रबोधिनी एकादशी


 

*डाॅ देवेन्द्र जोशी*

देव प्रबोधिनी एकादशी का धार्मिक के अलावा संस्कृत साहित्य की दृष्टि से भी विशिष्ट महत्व है। क्योंकि इसे संस्कृत विद्वानों ने महाकवि कालिदास की जयंती के रूप में मान्यता प्रदान की है। इसी आधार पर उज्जैन में सन् 1958 से प्रतिवर्ष आयोजित सप्त दिवसीय अखिल भारतीय कालिदास समारोह की शुरुआत इसी तिथि से होती है। 


उज्जयिनी की ऐतिहासिकता का प्रमाण ई सन् 600 वर्ष पूर्व मिलता है। तत्कालीन सोलह जनपदों में अवंतिका एक थी। चन्द्रप्रद्योत नाम के सम्राट का उज्जयिनी पर ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी तक प्रभुत्व था। वासवदत्ता उन्हीं की  पुत्री थी जो आगे चलकर कौशल सम्राट उदयन की प्रधान पटरानी बनी। दण्डिनी ने इसी आधार पर "वासवदत्ता" की रचना की।उज्जयिनी की नींव किसने रखी इसकी तो कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती लेकिन कतिपय विद्वान अच्युतगामी को उज्जयिनी को बसाने वाला मानते हैं। 

कनक श्रंगा, कुशस्थली,अवन्तिका, पद्मावती,कुमुद्वती, प्रतिकल्पा,अमरावती और विशाला कहीं- कहीं अम्बिका, हिरण्यवती और भोगवती आदि नाम वाली उज्जयिनी के अलग- अलग नामों की सार्थकता पर दृष्टि डालें तो कनकश्रंगा नाम यहाँ पर स्थित ऊंचे- ऊंचे रत्न मणि- मुक्ता मंडित तोरण द्वारों से सुशोभित प्रासादों का बोध कराता है। कुशल स्थली यहाँ की पवित्रता और प्रमुख देवताओं की स्थिति का बोध कराता है। कुश पवित्र घास को कहते हैं। अवन्तिका नाम सबके पालन, सुव्यवस्थित और सुरक्षा का प्रतीक है। पद्मावती नाम इसकी श्री संपन्नता को दर्शाता है। कुमुद्वती यहाँ के नैसर्गिक सौन्दर्य और रमणीय प्रकृति का द्योतक है। अमरावती नाम महाकाल वन क्षेत्र , पीठ, देवों के विशाल मंदिर आदि देवताओं के निवास स्थान का प्रतीक है। प्रतिकल्पा नाम इस नगरी की अचल स्थिति को सूचित करता है। पाणिनी ने (500 ई पू) अपनी अष्टाध्यायी में वरणादि गण- पाठ में उज्जयिनी का नामोल्लेख किया है। कालिदास और शूद्रक ने भी प्रमुख रूप से उज्जयिनी नाम का प्रयोग किया है।




कालिदास ने अपनी जन्मतिथि और जन्म स्थान के बारे में कहीं कोई उल्लेख नहीं किया है।लेकिन देव प्रबोधिनी एकादशी को महाकवि की जन्मतिथि और उज्जैन को कालिदास का जन्म स्थान मानने के मूल में उनके साहित्य में इन दोनों के प्रति व्यक्त हुआ अनुराग है। इतिहास संस्कृति और कालिदास साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान स्व, डाॅ भगवतशरण उपाध्याय ने अपनी कृति 'मध्यप्रदेशं नमामि'  में लिखा है कि 'कालिदास कहां से आए, कश्मीर या सूरांगनाओं के दर्पण हिमगिरी कैलाश की छाया में रमी अलका से, हम नहीं जानते। पर मध्यप्रदेश को उन्होंने अपना आवास बनाया, इसमें कोई संदेह नहीं है। कश्मीर से बंगाल तक उनकी जन्मभूमि होने का अपना दावा करते हैं। लेकिन कालिदास साहित्य में उज्जयिनी के प्रति जो अनुराग और आग्रह उजागर हुआ है, उससे यह सहज अनुमान लगता है कि उज्जैन से उनका निकट का संपर्क रहा होगा।'महाकवि कालिदास से लेकर पाणिनी, भास,राज शेखर, लक्ष्मीधर भट्ट, वाल्मीकि, शूद्रक,बाण भट्ट, भोज और विक्रमादित्य तक सभी ने उज्जैन का वर्णन किया है। लेकिन कालिदास ने जिस सूक्षमता और नजदीकी से उज्जयिनी को शब्दों में रूपायित किया है, उससे सहज अनुमान लगता है कि कवि ने जो देखा उसे अपनी रचनाओं में लिपिबद्ध कर दिया। कालिदास के रघुवंश में अवंतिनाथ, उनके प्रासाद, महाकाल , शिप्रा और उसके तटवर्ती उद्यान आदि का सुन्दर वर्णन मिलता है। मेघदूत में उज्जयिनी को स्वर्ग का चमकता हुआ टुकड़ा बताया गया है।शिप्रा की तरंगों को स्पर्श कर बहते पवन में घुलती सारस की क्रेंकार , महाकाल की संध्या आरती ,उस समय हाथ में चंवर लिए चूडियां खनकाती गणिकाएं, शिव  की भुजाओं से छनता प्रकाश, गंधवती के जल की कसैली गंध से महमहाता उद्यान, अभिसारिकाएं आदि कितने ही दृश्य मेघदूत में कालिदास की कलम से प्रकट हुए हैं। महाकवि की कल्पना में यह नगरी ऐसी लगती है  मानो स्वर्ग में अपने पुण्य का फल भोगने वाले,पुण्य समाप्त होने के पूर्व ही अपने बचे हुए पुण्य के साथ स्वर्ग का एक चमकीला टुकड़ा धरती पर उतार लाए हों। महाकवि  कालिदास ने इस नगरी की मालिनों और वणिकों का बड़ा मनोरम वर्णन किया है।कालिदास के अनुसार यहां के बाजारों में इतनी मोतियों की मालाएं ,रत्न, शंख सीपियां और नीलम के ढेर दिखाई देते हैं कि लगता है जैसे यहाँ के वणिक समुद्र से सबकुछ निकाल कर उज्जयिनी में ले आए हों।अब बेचारे समुद्र में केवल पानी ही शेष रह गया है। उज्जैन के इस सटीक वर्णन से विद्वानों की यह धारणा पुष्ट हुई कि कालिदास उज्जैन के ही होंगे। इसी तरह कालिदास साहित्य में देव प्रबोधिनी एकादशी तिथि का इतनी बार उल्लेख हुआ कि संस्कृत अध्येताओं को लगने लगा कि यह महाकवि की प्रिय तिथि रही होगी। प्रायः व्यक्ति की प्रिय तिथि उसकी जन्मतिथि ही होती है इसलिए देव प्रबोधिनी एकादशी को ही उनकी जन्मतिथि मानकर इस दिन से समारोह की शुरुआत होती है।


*डाॅ देवेन्द्र जोशी 85 महेशनगर अंकपात मार्ग उज्जैन मो 9977796267

 

 




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